वो एक दूसरे के करीब, बढ़े शौक से आते हैं फिर जब दिल भर जाता है, तो एक दूसरे का दिल जलाते हैं

कुछ अपनों के लिए लड़ रहे हैं,  कुछ अपने मजहब के लिए लड़ रहे हैं… बस फर्क इतना सा है, के सब एक ही हाथ की, अलग उंगलियां पकड़ रहे हैं…

हाथों में खंजर है उनके, वो किसी को गुलाब नहीं दे रहे हैं… अफ़सोस बस इस बात का है, साथ खड़े लोग साथ नहीं दे रहे हैं…

ना मैं किसी से खफा हूं,  ना ही मुझे किसी से कोई गिला है… बस अब उन चीजों के साथ वक्त बिताना चाहता हूं, अब तक मुझे जो मिला है…

मैं फिर भी आगे बढ़ूंगा,  मेरी जिंदगी अगर अपना हाथ नहीं देगी… मगर ये तुम भी याद रखना,  तुम्हारी जिंदगी भी हमेशा तुम्हारा साथ नहीं देगी…