ऐ जिंदगी तू मुझे कोई भी दशा दे, मैं खुद को उसमें ढाल सकता हूं… तेरे दिए हुए हर एक जख्म से, अब खुद को मैं निकाल सकता हूं…

मैं हमेशा अपने साथ वक्त बिताता हूं, इसलिए सही गलत में फर्क समझ पाता हूं… इस संग-साथ की कभी परवाह नहीं किया , जहाँ पूरा होता हूं, बस वहीं रह जाता हूँ…

बस पल भर का ये सवेरा है… ना ये मेरा था, ना ये तेरा है…

ख्वाबों की आड़ में, कभी हकीकत को नहीं भूलना चाहिए… कोई अपनी जान लेने पे आ जाए, जिंदगी तुझे इतना ब्याज नहीं वसूलना चाहिए…

तुझमें अकेले चलने का हुनर है,  तो किसी के आगे मजबूर नहीं होगा… जब तक तेरी खुशियाँ तेरे हाथ में हैं,  तब तक तू खुद से दूर नहीं होगा…